स्टेड डेस्क- संस्कारधानी जबलपुर मे महानद्दा नागपुर रोड और दमोह नाका को जोड़ने के लिए शुरू किए गए फ्लाई ओव्हर के निर्माण में कई गंभीर प्रश्न खडे होते हैं। जैसे कई कि.मी. लम्बे इस फ्लाई ओव्हर एक छोर के दस कदम दूरी पर शास्त्री ब्रिज की शुरूआत होती है। क्या यह आश्चर्यजनक नही है इतने लम्बे फ्लाई ओव्हर से जर्जर हो चुके शास्त्री ब्रिज को विस्थापित नही किया जाना चाहिए था? इसकी लम्बाई होम साइन्स चौराहे तक नहीं बढाई जानी थी? यदि कतिपय व्यापारिक संस्थानो को लाभ पहुचाने के लिए ऐसा अजीबो गरीब निर्माण किया जा रहा है तो इस निर्माण की चपेट मे आने वाले अन्य व्यापारिक संस्थानो को भविष्य पर पड़ने वाले पर्भाव पर विचार नही करना चाहिए था। कितने वर्षो मे यह प्रोजेक्ट पूरा होगा। इस अवधि के लिए इन मार्गो का इस्तेमाल करने वाले नागरिको के लिए क्या वैकल्पिक व्यवस्था की गई है? क्या यह प्रोजेक्ट जबलपुर स्मार्ट सिटी की योजना का हिस्सा है? क्या जबलपुर मे सीवर लाइन प्रोजेक्ट का कार्य निर्धारित समय में पूर्ण हो सका है। क्या कोरोना की मार से तृस्त पश्चिम विधान सभा के एक बडे व्यापारी पर यह एक और मार नही है। जबलपुर शहर अपनी समतलता के कारण सायकिल रिक्शा और सायकिलो का शहर माना जाता है। क्या इस तरह के फ्लाई ओव्हर के निर्माण के पूर्व इनको हो सकने वाली असुविधाओ पर विचार किया गया है? इसी तरह के कई पृश्न हो सकते हैं। क्या जनप्रतिनिधियों एवं मीडिया से व्यापक विचार विमर्श के बाद ही निर्माण कार्य शुरू किया जाना था? क्या ऐसा किया गया है? व्यापक विचार विमर्श के अभाव मे कहीं इस फ्लाई ओव्हर की दुर्गति भी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के वर्षो से अर्ध निर्मित पडे विशालकाय फ्लाई ओव्हर जैसी न हो जाए!