आदिवासी बहुल इलाकों के लिए शासन द्वारा हर साल करोड़ों का बजट पास किया जाता है और करोड़ों के विकास कार्य भी कराए जाते हैं लेकिन इसके बाद भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। कागजों में और धरातल में विकास की सच्चाई का बड़ा उदाहरण आज हम आपको देने जा रहे हैं। छिंदवाड़ा जैसे आदिवासी जिले में जिन आदिवासी क्षेत्रों के विकास के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं वहीं हालत ये हैं कि यहां के तीन गांव बारिश के दिनों में शहर के संपर्क से दूर हो जाते हैं और यहां के वसिंदे गांवों में ही कैद रहते हैं….

स्टेट डेस्क/छिंदवाड़ा – आजादी के 75 वर्षों बाद भी जिले में कुछ ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं जिनका बारिश के दिनों में शहर से संपर्क पूरी तरह टूट जाता है। तो वहीं ग्रामीण गांव की सीमा में ही कैद होकर रह जाते है। ऐसे में प्रशासन द्वारा बारिश के पूर्व ही इन गांवों में 6 माह का अनाज पंहुचा दिया जाता है। इधर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने का दावा भी किया जा रहा है।

हालाकि जमीनी हकीकत आने वाले महीनो में ही पता चल पाएगी। किन्तु प्रशासनिक रिकार्ड के अनुसार जिले में तीन गांव पहुंचविहीन है। जहां बारिश के दौरान पहुंचना असंभव हो जाता है। ग्रामीण गांव से बाहर नहीं निकल पाते है। तो वही प्रशासनिक सुविधा भी गांव में नहीं पहुंच पाती है। बताया जाता है कि इन पहुंचविहीन ग्रामों में एक जुन्नारदेव और दो तामिया ब्लॉक के ग्राम शामिल है। जहां प्रशासन द्वारा जून माह में ही 6 माह का खाद्यान पंहुचा दिया गया है।

इन गांवों में पहुंचना हो जाता है मुश्किल…

जिले में जुन्नारदेव ब्लॉक के अलमोड़ और तामिया ब्लॉक का ग्राम हररा कछार एवं करियाम रातेड़ पहुंचविहीन गांव हैं। जहां बारिश में पूरी तरह से शहरों से सम्पर्क टूट जाता है। चर्चा में जिला आपूर्ति अधिकारी अजित कुजूर ने बताया कि पहुंचविहीन ग्रामों में 6 माह का अग्रिम खद्यान्न पंहुचा दिया गया है। जिससे ग्रामीणों को गांव में ही खादान्न मिल जायेगा।

KBP NEWS.IN
…जाहिद खान
9425391823

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