स्टेट डेस्क – बिहार में पिछले वर्ष सितंबर में एक 15 वर्षीय बालक की गॉल ब्लैडर की सर्जरी के बाद मौत हो गई। सर्जरी किसी पेशेवर डॉक्टर ने नहीं बल्कि एक नीम हकीम द्वारा किया गया जो यूट्यूब पर किसी वीडियो को देखकर ऑपरेशन करता रहा। बिहार से दूर तेलंगाना के एक दूर दराज क्षेत्र में पिछले वर्ष नवंबर में एक 16 वर्षीया लड़की की मौत बुखार के इलाज के दौरान तब हो गई जब एक झोला छाप डॉक्टर ने इलाज के दौरान उसे दो इंजेक्शन लगाए। इस वर्ष फरवरी में उत्तर प्रदेश के संभल में जो कुछ समय पहले सांप्रदायिक तनाव के कारण समाचारों में था, एक महिला और उसके नवजात जुड़वा बच्चों की मृत्यु एक क्लिनिक में हो गई। नवजात जुड़वा बच्चों की डिलीवरी इस क्लिनिक में कराई जा रही थी जब ये मौतें हुईं। डिलीवरी कराने वाला “डॉक्टर” कोई और नहीं बल्कि एक एम्बुलेंस असिस्टेंट था जो पिछले पाँच वर्षों से अवैध क्लिनिक चला रहा था। पुलिस ने बाद में इस झोला छाप डॉक्टर को गिरफ़्तार कर लिया।

पूरे देश में हज़ारों लोग ऐसी मौतों का शिकार होते हैं और उनमें से बहुतायत ऐसे लोग होते हैं जो ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं और निजी अस्पतालों में मंहगा इलाज नहीं करा सकते या सरकारी अस्पतालों में बिगड़ी व्यवस्था के कारण आसपास के नीम हकीम या झोला छाप डॉक्टरों के शिकार बन जाते हैं। मध्य प्रदेश भी अपवाद नहीं है। पिछले वर्ष सिंगरौली में एक 9 वर्षीय बालिका की मृत्यु एक झोला छाप डॉक्टर के द्वारा इलाज के दौरान हो गई।सिंगरौली में ही इस वर्ष एक व्यक्ति की मृत्यु झोला छाप डॉक्टर द्वारा इंजेक्शन लगाने के बाद हो गई। ग्वालियर में पिछले वर्ष एक मरीज की इन्ही परिस्थितियों में जान चली गई। पर मध्य प्रदेश में दमोह का मामला थोड़ा भिन्न है। नरेंद्र विक्रमादित्य यादव भी एक झोला छाप डॉक्टर था पर फ़र्ज़ी मेडिकल डिग्री के साथ वह एक मिशनरी अस्पताल में 8 लाख रुपये वार्षिक वेतन पर एक ख्यातिनाम हृदय रोग विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत था और वो भी ब्रिटिश “डॉ. एन जॉन केम” के नाम से।

अभी हाल में ही इसने 15 ऑपरेशन किए जिनमें से 7 मरीजों की मौत हो गई। अगर इतनी बड़ी संख्या में मरीज नहीं मरते तो शायद इस फर्जी डॉक्टर का कारनामा आगे भी चल रहा होता।वस्तुतः इस फर्जी डॉक्टर का कारनामा इसलिए सामने आ पाया क्योंकि दीपक तिवारी नाम के एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता जो अधिवक्ता भी हैं ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया और कलेक्टर के सामने तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस फर्जी डॉक्टर की शिकायत की, नहीं तो “डॉ. एन जॉन केम” उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य कई गणमान्य लोगों के साथ अपना कथित फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करके लोगों की नज़र में सम्मानित ही बना रहता।
यह भी आशंका है कि इसने फोटो फर्जी तरीके से बनायी है। आशंका यह भी है कि इस व्यक्ति के हाथों बहुत सारी मौतें हुई हैं जो शायद उच्च स्तरीय जांच के बाद सामने आ पाए।इस व्यक्ति ने ब्रिटेन के डॉ. हरॉल्ड शिपमैन नामक कुख्यात सीरियल किलर और डॉक्टर की याद दिला दी है जिसे “डॉक्टर डेथ” के नाम से जाना जाता था। उसने 1970-1990 के दशक में अनुमानित 250 मरीजों को जानबूझकर घातक इंजेक्शन देकर मार डाला।
संयोग से नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने फर्जी हृदय रोग विशेषज्ञ के तौर पर ब्रिटेन का ही नाम कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर जॉन केम अपनाया। यह घटना एक बार और सरकारी व्यवस्था में और प्राइवेट अस्पतालों के स्तर पर भी खामियों और लापरवाही को दर्शाता है।अस्पताल ने अगर यादव के दस्तावेजों की ठीक से जाँच की होती तो उसका फ्रॉड पहले ही पकड़ा जाता और ना तो वह मरीजों का ऑपरेशन कर पाता और ना ही ये जानें जातीं।
स्वास्थ्य विभाग की यह जिम्मेदारी है कि वह इस बात की जांच करे कि उसके क्षेत्राधिकार में जो भी मेडिकल प्रैक्टिशनर्स हैं उनके पास वैध मेडिकल डिग्री है या नहीं या कहीं वे झोला छाप तो नहीं हैं।
मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के लिए यह जरूरी है कि वे संबंधित राज्य के मेडिकल कौंसिल में अपना रजिस्ट्रेशन करायें पर कौंसिल और प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग की यह महती ज़िम्मेदारी है कि कोई भी व्यक्ति फर्जी डिग्री के बलबूते ना अपना क्लिनिक चलाये और ना ही किसी प्राइवेट अस्पताल में उस फर्जी डिग्री के साथ मरीजों का इलाज करने पाए।

यादव 2019 से ही विवादों में था पर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा उसकी गतिविधियाँ नज़रअंदाज़ की गईं।
यह मिशनरी अस्पताल आयुष्मान भारत योजना से भी जुड़ा था और सरकारी फंड ले रहा था इसलिए स्थानीय मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी और ऊपर के अधिकारी की और भी जिम्मेदारी थी कि वे अस्पताल के संचालन और स्टाफ की योग्यता की जाँच करते।
पर लगता है सभी ज़िम्मेदार अधिकारी या तो सुप्तावस्था में थे या सरकारी फण्ड के मैनेजमेंट में व्यस्त थे इसलिए उन्होंने इधर ध्यान नहीं दिया और डॉ. एन जॉन केम अपना काम आसानी से करता रहा जब तक कि उसके हाथों 7 मौतों ने सरकारी सिस्टम को नहीं झकझोरा।
सरकार बार बार यह दावा करती है कि कैसे प्रभावी अभियान चलाकर प्रदेश को डकैतों से मुक्त कर दिया पर काश कभी यह भी दावा करती कि अभियान चलाकर प्रदेश को झोला छाप डॉक्टरों से मुक्त कर दिया और सैकड़ों लोगों को उनके हाथों से मरने से बचा लिया।

लेखक – रंजन श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार (मध्य प्रदेश)

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