स्टेड डेस्क

ज़ाहिद खान, एडिटर इन चीफ 9425391823


छिंदवाड़ा। शिक्षाकर्मी आंदोलन से शिक्षकों के बीच सक्रिय श्रीमती माया शर्मा को मप्र शिक्षक कांग्रेस का जिला कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया गया है। म.प्र. शिक्षक कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष निर्मल अग्रवाल एवं कार्यकारी प्रांतीय अध्यक्ष राम नरेश त्रिपाठी की अनुशंसा पर जिलाध्यक्ष श्याम कावेरी ने 1 जुलाई को जिला कार्यकारिणी में जिला कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है।


श्रीमती माया शर्मा को कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाए जाने पर शिक्षक कांग्रेस के पदाधिकारियों ने बधाई दी है तथा जिलाध्यक्ष श्याम कावेरी, प्रांतीय अध्यक्ष निर्मल अग्रवाल, राम नरेश त्रिपाठी का आभार जताया है। श्रीमती माया शर्मा शासकीय हाई स्कूलो बनगांव में माध्यमिक शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं।
कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाए जाने पर माया शर्मा ने शिक्षक कांग्रेस द्वारा शिक्षकों एवं शिक्षा विभाग के हित में किए गए कार्यों की तारीफ करते हुए कहा कि यही वो संगठन है जिसने शिक्षकों एवं कर्मचारियों के लिए वेतन आयोगों के गठन की लड़ाई लड़ी, उन्हें पांचवां वेतनमान दिलाकर वेतनों में इजाफा कराया। उन्होंने बताया कि पांचवें वेतनमान के बाद ही शिक्षकों सहित कर्मचारियों के वेतन में एक साथ कई गुना बढ़ोतरी हुई, जिससे शिक्षकों एवं कर्मचारियों में आर्थिक संपन्नता आई। माया शर्मा ने कहा कि देश में कर्मचारी एवं श्रमिक हितैषी विचारधारा के कमजोर होने की कीमत शिक्षक और कर्मचारी चुका रहे हैं, उनसे पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा छीन ली गई है। नौकरियों में स्थायित्व समाप्त किया गया है, अतिथि शिक्षक जैसी नौकरियां देकर सरकारों ने शिक्षकों का शोषण शुरू किया है, उन्हें श्रमिकों से भी बुरी स्थिति में पहुंचाया गया है। आझ शिक्षक आंदोलन के सामने यह चुनौतियां जिन्हें स्वीकार करके ही आगे बढ़ा जा सकता है।
तत्कालीन कांग्रेस सरकारों का जिक्र करते हुए नवनियुक्ति कार्यकारी जिलाध्यक्ष माया शर्मा ने कहा कि कर्मचारियों के अधिकारों में कटौतियां 1996 के बाद शुरू हुई, तब केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार थी, इन कटौतियों के बाद हुई भर्तियां अस्थाई जैसी थीं, जिनमें न स्थायित्व था और न ही सम्मानजनक वेतन। मप्र में उस वक्त की सरकार ने शिक्षाकर्मी भर्ती किए और उन्हें 3 साल बाद नियमित करने का प्रावधान जोड़कर स्थायित्व दिया, जबकि दूसरे प्रदेशों में अब भी उस वक्त हुई भर्तियों वाले शिक्षक अस्थाई हैंं और वे नियमित होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यदि उस वक्त की सरकार ने ऐसा नहीं किया होता, तब शिक्षाकर्मियों की स्थिति अतिथि शिक्षकों जैसी ही होती। संविदा शिक्षकों के लिए भर्ती नियम भी तत्कालीन सरकार ने ही बनाए थे, उन्हीं नियमों से भर्ती किए गए शिक्षक नियमित हैं, उसके बाद आई सरकारों ने तो नौकरियों में स्थायित्व को ही समाप्त कर दिया।
श्रीमती माया शर्मा ने कहा कि वर्तमान में शिक्षा विभाग से लेकर हर सरकारी विभाग या यूं कहें कि समूचा सरकारी क्षेत्र गंभीर संकट से गुजर रहा है, जहां अनिश्चितता, वेतन विसंगतियों की भरमार है, नौकरियों में स्थायित्व समाप्त हो चुका है, पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा उनसे छीन ली गई है, इस स्थिति में शिक्षक एवं कर्मचारी संगठनों की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह उनसे जो कुछ छीना गया है, उसे वापस पाने के लिए एकजुट हों और मिलकर संघर्ष करें।

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