छग-जरूरत है कि महिलाओं को सशक्त बनाएं और उन्हें हिम्मत प्रदान करें। उनकेे प्रति सम्मान के भाव रखें, हालांकि कई क्षेत्रों में बदलाव आया है परंतु और प्रयास की आवश्यकता है। अपनी बेटियों को रानी दुर्गावती के रूप में तैयार करें। उनमें इतनी हिम्मत और साहस पैदा करें, जिससे वे हर मुसीबत का मजबूती से सामना कर सकें। रानी दुर्गावती हमारे बीच नहीं है परंतु एक साहस के प्रतीक के रूप में जीवित हैं। पूरे समाज को उनसे प्रेरणा लेना चाहिए। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने कही। वे आज वीरांगना रानी दुर्गावती की जयंती पर छत्तीसगढ़ जनजाति गौरव समाज द्वारा आयोजित वेबीनार को संबोधित कर रही थी। इस अवसर पर राज्यपाल ने रानी दुर्गावती की जयंती पर उन्हें नमन किया और सभी को बधाई और शुभकामनाएं दी।

राज्यपाल ने रानी दुर्गावती के जीवन के बारे चर्चा करते हुए कहा कि कुछ दिनों में नवरात्रि की शुरूआत होगी, उसमें देवी की नौ रूपों की पूजा करेंगे और उन्हें स्मरण करेंगे। आज ऐसी ही एक मातृ शक्ति और महान वीरांगना स्वतंत्रता की अलख जगाने वाली का जन्मदिवस है जिसे हम वीरांगना रानी दुर्गावती जी के नाम से जानते हैं। रानी दुर्गावती वास्तव में शक्ति की प्रतीक थीं जिन्होंने उस समय अपने दुश्मनों के खिलाफ अपनी सेना को संगठित किया और उनके दांत खट्टे कर दिए। मुगलों के खिलाफ अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई। रानी दुर्गावती ने अपने राज्य की समृद्धि के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए, सेना को सुगठित किया। उस समय कई युद्ध हुए जिनमें दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी और रानी दुर्गावती की विजय होती रही। मुगल राजा अकबर के समय आसफ खान ने गढ़ मंडला पर हमला किया। उस समय मुगलों की सेना शक्तिशाली और सशक्त थी। लेकिन रानी ने कहा कि शर्मनाक जीवन जीने की तुलना में सम्मान से मरना बेहतर है। फिर उन्होंने युद्ध करने का फैसला किया और उनके बीच युद्ध छिड़ गया तथा मजबूती से सामना किया।
सुश्री उइके ने कहा कि गोंडवाना की विदुषी शासिका वीरांगना दुर्गावती ने अपने राज्य के अंतर्गत व्यापक रूप से जनोपयोगी एवं सुधार के कार्य किये थे। उनमें जो गुण थे, वे निश्चित रूप से किसी भी योग्य शासक के थे। उन्होंने तत्कालीन आवश्यकता को समझते हुए कुशल प्रशासन किया। यही कारण है कि उनका नाम भारतीय वीरांगनाओं की प्रथम पंक्ति में है। रानी दुर्गावती के दरबार में संस्कृति के कई विद्वान थे, उन्होंने साहित्य संगीत और शिक्षा से संबंधित कार्यों को आगे बढ़ाया। दुर्गावती के शासन काल साहित्य और संस्कृति की पर्याप्त उन्नति हुई। रानी दुर्गावती कुशल प्रशासक, प्रजा वत्सल्यता, साहिष्णुता, उदारता और सैन्य गुणों से सम्पन्न थी।
राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने राज्य में चार स्तर तय किये थे। एक केन्द्रीय शासन व्यवस्था, दूसरा स्तर मंडल शासन व्यवस्था जो केन्द्र के अधीन थी। सुबा शासन व्यवस्था जिन्हें दो सौ के लगभग किल्लेदारी दी गई थी, मंडलाधिकारियों के अधीन थे और अंतिम था ग्राम्य शासन। इस प्रकार हम पाते हैं कि केन्द्रीय व्यवस्था स्वयं महारानी कुछ विश्वसनीय मंत्री परिषद् की सहायता से देखती थी। संपूर्ण राज्य में सात मंडल थे। इसलिए इतिहासकारों ने गढ़ामंडला के साम्राज्य को सप्त महामंडलेश्वर की संज्ञा दी है।
राज्यपाल ने आयोजकों को इस कार्यक्रम के लिए बधाई देते हुए कहा कि आपके द्वारा बहुत अच्छा कार्य किया जा रहा है। इससे जनजाति समाज के गौरव और व्यक्तित्व की जानकारी पूरे समाज को मिलेगी। यह कार्य सराहनीय है। आज की बदली हुई परिस्थितियों में अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा दें और सशक्त बनाएं। मुझे गर्व है कि मैं जनजातीय समाज से हूं और मुझे राज्यपाल का महत्वपूर्ण पद संभालने का अवसर मिला है। इसके लिए मैं राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद देती हूं। साथ ही समाज को भी मैं धन्यवाद देती हूं, जिन्होंने मुझे हौसला प्रदान किया।
इस अवसर पर पूर्व सांसद रामविचार नेताम ने भी अपना संबोधन दिया। वेबिनार में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय, पूर्व सांसद कमलभान सिंह, पूर्व मंत्री केदार कश्यप, पूर्व विधायक श्रीमती पिंकी शिवराज शाह, श्रीमती अर्चना पोर्ते, जनजातीय गौरव समाज छत्तीसगढ़ के प्रांतीय अध्यक्ष एम. डी. ठाकुर, जनजातीय गौरव समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश महासचिव विकास मरकाम भी उपस्थित थे।